किरण परी गगरी छलकाए, ज्योत का प्यासा प्यास बुझाए

नया वर्ष 20 ओवर के ताबड़तोड़ क्रिकेट की तरह होने की आशा की जा सकती है। व्यवस्था के खिलाफ आशंका बनी रह सकती है परंतु आशा का दामन कभी छोड़ा नहीं जा सकता क्योंकि कोई ऐसी रात नहीं है जिसका सवेरा ना हो। क्रिकेट के मुहावरे को ही आगे ले जाएं तो नववर्ष बल्लेबाज, गेंदबाज, क्षेत्ररक्षक का नहीं होकर दर्शक का हो सकता है। नववर्ष आवाम के सच्चे जागरण का भी हो सकता है।


यह उनके आत्म परीक्षण का समय है कि वे जान लें कि सारे तमाशे उनके ही दम पर चल रहे हैं। कैफी आज़मी की नज्म है - जिंदगी जेहद में है, सब्र के काबू में नहीं, लब्ज-ए-हस्ती का लहू कांपते आंसू में नहीं, उड़ने खुलने में है निकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं, जन्नत इक और है जो मर्दके पहलू में नहीं, उसकी आज़ाद रविश पर भी मचलना है तुझे, उठ मिरी जान मिरे साथ ही चलना है तुझे।


महिला स्वतंत्रता के पक्ष में लिखी गई यह कविता पुरुषों पर भी लागू होती है। नववर्ष में आमिर खान की ‘फॉरेस्ट गंप’ से प्रेरित ‘लाल सिंह चड्ढा’, सलमान खान की अभिनीत ‘राधे’ प्रदर्शित होंगी। शाहरुख खान और राजकुमार हिरानी की मुलाकातें जारी है। नतीजा आने में समय लगेगा।


बोनी कपूर की फुटबॉल केंद्रित ‘मैदान’, सुजीत सरकार की अमिताभ बच्चन आयुष्मान खुराना अभिनीत ‘गुलाबो-सिताबो’, अक्षय कुमार की ‘बच्चन पांडे’, डेविड धवन की ‘कुली नंबर वन’ का प्रदर्शन होगा। एक दौर में डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने ‘चाणक्य’ नामक सफल-सार्थक सीरियल बनाया था। उन्होंने अमृता प्रीतम की कथा से प्रेरित ‘पिंजर’ बनाई थी।


उनकी इतिहास फिल्म ‘पृथ्वीराज चौहान’ प्रदर्शित होगी। अजय देवगन अपनी पत्नी काजोल के साथ ‘तान्हाजी’ में जलवाफरोश होंगे। खुशी की बात तो यह है कि राजकुमार राव, आयुष्मान खुराना और विकी कौशल जैसे कलाकारों की फिल्में दर्शकों को सिनेमा घर लाने में सफल हो रही हैं। कंगना रनोट अभिनीत जयललिता बायोपिक के साथ ही जयललिता की अंतरंग मित्र शशिकला की बायोपिक भी प्रदर्शित होगी।


जयललिता और शशिकला का साथ जन्म जन्मांतर का है। दोनों की बायोपिक भी साथ ही प्रदर्शित होंगी। रणबीर कपूर के बाल सखा अयान मुखर्जी के साथ उनकी आलिया भट्ट अभिनीत ‘ब्रह्मास्त्र’ का प्रदर्शन भी नव वर्ष में होने जा रहा है। रणबीर कपूर अपने परिवार की परंपरा को जारी रखने वाले हैं।


असंभव के विरुद्ध जंग लड़ने वाले शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर को प्रसन्नता होगी कि पुणे फिल्म संस्थान में सन 1985 में अफ्रीका में बनी फिल्म का प्रिंट मिल गया है। अंग्रेजों के खिलाफ मुहिम पर आधारित फिल्म ‘सोमालिया दरवेश’ सईद सलाह अहमद ने एक हिंदुस्तानी के पूंजी निवेश से बनाई थी। दरवेश पवित्र आत्मा के संन्यासी को कहा जाता है।


भौतिकता को तजने वाला दरवेश आध्यात्म का सबक सिखाते हुए निरंतर यात्रा पर रहता है। वह जहां रात्रि का विश्राम करता है, उस जगह को सराय मान लिया जाता है। भारत में आजादी की पहली बड़ी लड़ाई 1857 में लड़ी गई और सोमालिया में 1891 में लड़ी गई। स्वतंत्रता मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है और दुनिया के हर भाग में इसके लिए लोगों ने तन-मन-धन लगा दिया है।


सदियों से जारी संघर्ष ने एक नए किस्म की स्वतंत्रता का भरम भी खड़ा किया है। जहां हुड़दंग की समानांतर सरकार चलती है। एंथनी क्विन अभिनीत फिल्म ‘लॉयन ऑफ डेजर्ट’ भी एक ऐसी ही फिल्म थी। इतिहास को संकीर्णता के नजरिए से प्रस्तुत करने वाली देश प्रेम की फिल्में भी बनाई जा रही हैं। सारा दारोमदार आम आदमी के सच्चे अर्थ में जागने पर निर्भर करता है।


कहते हैं कि सोते हुए व्यक्ति को जगाना आसान है, परंतु सोते रहने का स्वांग करने वाले को कैसे जगाएं? दरवाजे पर दस्तक दी जा सकती है, परंतु जो उठकर दरवाजा खोलना नहीं चाहे, उसका रोग लाइलाज है। नववर्ष पर लाइलाज रोगों के उपचार का वर्षसिद्ध होने की प्रार्थना की जा सकती है। हमारे कॉपी राइट एक्ट का संशोधन हुआ है और संसद में वह पारित हुआ है।


पश्चिम में कॉपी राइट एक्ट सख्त भी है और उसका पालन भी किया जाता है। जब हमारे यहां नियमों का पालन नहीं होता तब लेखकों के अधिकार की बात गौण हो जाती है। छात्र और किसान की रक्षा आवश्यक है। दरअसल हमारे चमन को हमारे अपनों ने ही लूटा है।