रीमेक, रीमिक्स और रीसाइक्लिंग

बाला और उजड़ा चमन की कथाओं में समानता है। दरअसर दोनों ही फिल्में कन्नड़ भाषा में बनी राज बी. शेट्टी की फिल्म से प्रेरित हैं। कथाओं में रीमेक और संगीत में रीमिक्स ने अवसर समाप्त कर दिया है। एक संगीत बेचने वाली कंपनी निर्माता को फिल्म संगीत के मुंहमांगे दाम देती है, परंतु उसके संगीत बैंक से ही गीत लेने पड़ते हैं। इस कंपनी ने मिलन, विरह, शादी, तलाक, तीज-त्योहार पर गीत रिकॉर्ड करके रखे हैं। प्रतिभा के लिए सारे रास्ते बंद किए जा रहे हैं। कुछ दिन पूर्व अजय देवगन अभिनीत ‘दृश्यम’ जिस दक्षिण भातीय फिल्म से प्रेरित थी, वह देखने का अवसर मिला। हर शॉट को कॉपी किया गया है। सैट भी समान लगाए गए हैं। दक्षिण भारत की एक फिल्म की प्रेरणा से बंबई में एक फिल्म बनी। मूल फिल्म में नायक और नायिका खलनायकों से बचते हुए एक नदी में कूद पड़ते हैं। मुंबइया फिल्म में समुद्र में छलांग लगाते हुए पात्र कहते हैं कि वे नदी में कूदने जा रहे हैं। नकल करते समय थोड़ी अक्ल भी लगाना चाहिए। अभी तक अक्ल लगाने पर कोई सरकारी बंदिश नहीं लगाई गई है। अदम कहते हैं- ‘अक्ल हर काम को जुल्म बना देती है, बेसबब सोचना, बेसुद पशीमां होना’।



कथा फिल्मों के प्रांभिक दौर में हॉलीवुड फिल्मों की प्रचार सामग्री में कथा का सारांश लिखा होता था। एक व्यक्ति ने इसी सामग्री में कुछ और कहीं से उठाकर जोड़ दिया और कहानी बेचना शुरू कर दिया। उस चतुर सुजान का काम चल निकला। रीसाइक्लिंग प्रक्रिया सतत जारी रहती है। सनकी लोग कहते हैं कि ईश्वर ने हमें आंखें नकल करने के लिए ही दी हैं। आई.एस.जौहर ने ‘नॉक ऑन वुड’ की नकल करके फिल्म बनाई थी तो अमेरिकन निर्माता ने मुकदमा कायम किया। आई.एस.जौहर ने स्पष्ट किया कि जितना हरजाना अमेरिकन फिल्मकार ने मांगा है, उतने में बंबई में दो दर्जन फिल्में बनती हैं। बजट और आय का अंतर बहुत मायने रखता है, परंतु मौलिकता के अभाव को हमें स्वीकार करना चाहिए। 



नकल करना केवल कला तक सीमित नहीं है। ‘सांवरिया’ का सैट ‘पैंटम ऑपेरा’ नामक फिल्म से लिया गया था। इसी तरह ‘बाजीराव मस्तानी’ के दरबार का सेट भी एक अमेरिकन फिल्म की प्रेरणा से बना है। प्रेरित या प्रभावित होना कोई बुरा काम नहीं है। हमारे विज्ञान के छात्र विदेशी रचनाओं पर ही निर्भर करते हैं। औद्योगिक विकास भी पश्चिम की ओर देखता है। उसके स्रोत से उसे कोई लेना-देना नहीं है। दरअसल ज्ञान-विज्ञान और साहित्य के क्षेत्र में पूर्व-पश्चिम का कोई भेद नहीं है। सारे भेद नेता पैदा करते हैं। फिल्मकार विश्राम बेडेकर अपनी फिल्म ‘रुस्तम सोहराब’ की शूटिंग कर रहे थे। उनका पुत्र विदेश में शिक्षा ग्रहण कर रहा था और छुटि्टयों में भारत आया था। 



विश्राम बेडेकर से उनके पुत्र ने पूछा कि फिल्म के कुछ पात्र यूनानी पोशाक पहने हैं और कुछ पात्र मुगल पोशाक पहने हैं। उनका पुत्र जानना चाहता था कि फिल्म में प्रस्तुत कथानक और पात्र किस कालखंड के हैं? विश्राम बेडेकर ने अपने पुत्र को समझाया कि यह फिल्म उनकी निर्माण संस्था के बुरे कालखंड की फिल्म है। मित्र फिल्मकारो से पोशाक, शस्त्र इत्यादि चीजें उधार ली गई हैं। जीवन में अच्छे और बुरे दौर का अर्थ यह है कि जब आप संवेदनशील और सज्जन लोगों से मिलते हैं, तब आपका सही दौर चल रहा है। अच्छा और बुरा दोनों इस पर निर्भर करता है कि किस व्यक्ति से आप कब और कहां मिल रहे हैं। 
हमारे कॉपी राइट एक्ट का संशोधन हुआ है और संसद में वह पारित हुआ है। पश्चिम में कॉपी राइट एक्ट सख्त भी है और उसका पालन भी किया जाता है। जब हमारे यहां नियमों का पालन नहीं होता तब लेखकों के अधिकार की बात गौण हो जाती है। छात्र और किसान की रक्षा आवश्यक है। दरअसल हमारे चमन को हमारे अपनों ने ही लूटा है।